पदोन्नति में आरक्षण जायज़:सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने क्रमी लेयर को आरक्षण सुविधा के दायरे से बाहर रखा है
भारत की सर्वोच्च अदालत ने सरकारी नौकरी कर रहे अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था को जायज़ ठहराया है.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वाईके सभरवाल की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को यह फ़ैसला सुनाया.
अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा है कि पदोन्नति में आरक्षण तो ठीक है लेकिन 'क्रीमी लेयर' में आने वालों को इस सुविधा से बाहर रखना होगा.
क्रीमी लेयर का मतलब ऐसे लोगों से है जो अनुसूचित जाति और जनजाति के होते हुए भी आर्थिक रुप से संपन्न हैं.
संविधान पीठ ने कहा है कि किसी भी सूरत में अधिकतम 50 फ़ीसदी आरक्षण की सीमा को बढ़ाया नहीं जा सकता.
अदालत ने कहा है कि पदोन्नति में आरक्षण देते समय सरकार को यह बताना होगा कि समाज के संबंधित तबके की प्रशासनिक महकमे में पर्याप्त भागीदारी नहीं है.
साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पदोन्नति में आरक्षण से प्रशासनिक क्षमता प्रभावित न हो.
ओबीसी कोटा
अभी उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने के सरकारी फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर भी सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है.
पिछले दिनों कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण लागू करने संबंधी संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट पहले उसे सौंपे.
विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत के इस फ़ैसले से टकराव की स्थित उत्पन्न हो सकती है.
ग़ौरतलब है कि संसद के मॉनसून सत्र में उच्च शिक्षा संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण से संबंधित विधेयक पेश किया गया था.
इस पर संसद की स्थायी समिति विचार कर रही है और परंपरा रही है कि समिति इसे पहले संसद के समक्ष पेश करती है. उसके बाद ही इसे किसी और को सौंपे जाने की परंपरा है.
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