Tuesday, December 12, 2006

दलितों ने माँगा पूजा का अधिकार

राजस्थान में दलित पुजारी के मंदिर में प्रवेश पर रोक लगाने के विरोध में मंगलवार को सैकड़ों दलितों ने दलित पुजारी के साथ मंदिर में प्रवेश करके पूजा की.
भीलवाड़ा ज़िले के सुलिया गाँव में गुज्जर जाति के लोगों ने इस दलित पुजारी के मंदिर में प्रवेश करने पर कथित रूप से रोक लगा दी थी.
दलितों ने इसका विरोध करते हुए मंदिर में इसी दलित पुजारी के साथ प्रवेश किया और उसी के सहयोग से पूजा भी की.
इस दौरान किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए स्थानीय प्रशासन की ओर से सुरक्षा के ख़ास इंतज़ाम किए गए थे.
दलितों ने अपने विरोध-प्रदर्शन से पहले यह चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने से रोका गया तो वो विरोध स्वरूप मंदिर को अपने प्रभाव में ले लेंगे.
दलित समुदाय का कहना है कि इस सदियों पुराने मंदिर में गुज्जर और दलित समुदाय के पुजारी पारंपरिक तौर पर पूजापाठ का काम संभालते रहे हैं.

भेदभाव का आरोप
इस विरोध के संदर्भ में दलित समुदाय के लोगों का आरोप है कि अक्टूबर के महीने में गुज्जर जाति के लोगों ने दलित पुजारी को मंदिर से बाहर फेंक दिया था और कहा था कि दलितों को मंदिर में प्रवेश करने का कोई अधिकार नहीं है.
उधर गुज्जर जाति के लोगों का कहना है कि वे दलितों के मंदिर में प्रवेश के ख़िलाफ़ नहीं हैं पर कोई भी दलित जाति का व्यक्ति पुजारी यहाँ नहीं बन सकता है.
उनकी ओर से दलितों की इस दलील को भी ख़ारिज किया गया जिसके अनुसार इस मंदिर में पारंपरिक रूप से दलित पुजारी भी पूजापाठ कराते रहे हैं.
इस क्षेत्र से विधायक और राज्य सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में काम कर रहे कालूलाल गुज्जर ने इस पूरे मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि इसके पीछे कुछ असामाजिक तत्व जातीय तनाव पैदा करना चाहते हैं.
ग़ौरतलब है कि संवैधानिक रूप से देशभर में छुआछूत को ख़त्म किया जा चुका है, बावजूद इसके दलितों के साथ भेदभाव और शोषण के मामले सामने आते रहे हैं.

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