दलितों-आदिवासियों ने बौद्ध धर्म अपनाया
दलितों और आदिवासियों के ईसाई धर्म अपनाने का हिंदू संगठन विरोध करते रहे हैं
मुंबई में रविवार को आयोजित धर्मांतरण कार्यक्रम में कई हज़ार दलितों और आदिवासियों ने बौद्ध धर्म अपना लिया. इसमें लगभग 35 हज़ार लोग शामिल हुए. बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर ने 50 वर्ष पहले बौद्ध धर्म अपनाया था और इसी के उपलक्ष्य में इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में सबसे ज़्यादा लोग महाराष्ट्र के थे और इनमें वंजारा समुदाय के लोगों की संख्या सबसे अधिक थी.इस बात के कोई सबूत उपलब्ध नहीं हैं कि धर्मांतरण करने के बाद दलितों और आदिवासियों के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में कोई बदलाव आता है
आयोजकों ने पाँच लाख लोगों के पहुँचने का दावा किया था लेकिन भीड़ सिर्फ़ 30 से 35 हज़ार लोगों की थी जिनमें से कुछ हज़ार लोगों ने धर्मांतरण कराया. हालाँकि मुख्य आयोजकों में से एक राहुल बोधी का दावा है कि एक लाख लोग धर्मांतरित हुए हैं. इस कार्यक्रम में बौद्ध आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा भी आने वाले थे लेकिन अस्वस्थ होने के कारण नहीं पहुँच सके.
कितना असरदार
राजनीति और समाज पर गहरी नज़र रखने वाले योगेंद्र यादव कहते हैं कि यह रस्मी घटना बन गई है. उनका कहना है, "इस बात के कोई सबूत उपलब्ध नहीं हैं कि धर्मांतरण करने के बाद दलितों और आदिवासियों के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में कोई बदलाव आता है."वे कहते हैं, "यह बाबा साहेब अंबेडकर की शुरू की हुई परंपरा है जिसे हिंदू वर्ण व्यवस्था के प्रति अपना क्षोभ प्रकट करने के लिए दलित प्रतीकात्मक तौर पर इस्तेमाल करते रहे हैं लेकिन बहुजन समाज पार्टी जैसे दलित नेतृत्व ने अब इसे तिलांजलि दे दी है क्योंकि उन्हें इसका बहुत लाभ नहीं दिखता." दलितों को इज्जत तभी मिलेगी जब वे मौजूदा सामाजिक वर्ण व्यवस्था से बाहर निकलेंगे. इसीलिए दलित-आदिवासी बौद्ध धर्म अपना रहे हैं
उदित राज
जस्टिस पार्टी के प्रमुख उदित राज धर्मांतरण को जायज ठहराते हुए कहते हैं, "दलितों को इज्जत तभी मिलेगी जब वे मौजूदा सामाजिक वर्ण व्यवस्था से बाहर निकलेंगे. इसीलिए दलित-आदिवासी बौद्ध धर्म अपना रहे हैं.
"कुछ दक्षिणपंथी हिंदू संगठन इस तरह के धर्मांतरणों का विरोध करते रहे हैं. धर्मांतरण करने वालों को उम्मीद है कि इसके ज़रिए वे उस जातिप्रथा से बाहर निकल सकेंगे जिसमें उन्हें सबसे निचले तबके का माना जाता है. हालांकि सरकार ने दलितों और आदिवासियों को आरक्षण देने की व्यवस्था की है लेकिन इससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बहुत सुधार नहीं हुआ है.
वैसे भारत में धर्मांतरण एक विवादित विषय रहा है. विशेषकर अगर वह हिंदू से इस्लाम या ईसाइयत में धर्मांतरण हो. हालांकि हिंदुओं के बौद्ध हो जाने का अब तक ख़ास विरोध नहीं हुआ है क्योंकि बौद्ध धर्म को एक तरह से हिंदू धर्म का ही विस्तार माना जाता है.
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