जाति की जकड़न का नया जमावड़ा
आरएल फ्रांसिस ने खुला पत्र लिखकर कहा है कि चर्च नेतृत्व दलित इसाईयों के साथ विश्वासघात कर रहा है. चर्च ने उन्हे दूसरे दर्जे का ईसाई बना रखा है.
विल्लपुरम जिले में एक गांव है इरैयुर. रविवार की प्रार्थना के बाद वहां दो ईसाई समुदायों में जमकर टकराव हुआ. बात यहां तक बढ़ी कि पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा. इस टकराव में दो लोग मारे गये और कई जख्मी हुए. यह आपसी रंजिश का साधारण सा मामला नहीं है. यह टकराव उन लोगों में हुआ जो जाति बंधन काटने के लिए ईसाई हुए थे. वन्नियार ईसाईयों ने दलितों के घरों में आग लगा दी. क्योंकि यह ईसाई समूह ने किया था इसलिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और मीडिया ने इस घटना पर ज्यादा कान नहीं दिया.
यह घटना न पहली बार घटी और न आखिरी बार. तमिलनाडु में कैथोलिक चर्च की उपस्थिति सदियों पुरानी है. यहां उनका अस्तित्व 1602 से है. तब से केवल चर्च ही नहीं बल्कि ईसाईयों के बीच ऊंचनीच का भेदभाव भी बना हुआ है. ऐसा भी नहीं है कि ऐसा सब करते हुए पोप को अंधेरे में रखा जाता है. यह सब बाकायदा पोप की इजाजत से होता है. शुरूआत के दिनों में धर्मांतरण के केन्द्र में ब्राह्मण थे. क्योंकि पादरी समाज यह मानता था कि अगर ब्राह्मण धर्म परिवर्तन कर लेता है तो सारा समाज अपने आप उसके पीछे चला आयेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. फिर पादरियों ने अपनी रणनीति बदली और दलितों को अपना निशाना बनाया.
19 और 20 वीं सदी में पादरियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। दलितों को जो स्वप्न दिखाये गये थे वे मृगमरीचिका दिखाई साबित हुए. अब वे ईसाई होकर भी अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. यह लड़ाई पिछले 300 सालों से चल रही है. लेकिन चर्च उनकी इस लड़ाई को सफल नहीं होने देता. अगर दलितों के इस हालात को सबसे पहले किसी ने पहचाना तो वे डॉक्टर भीमराव अंबेडकर थे. उन्होंने कहा था कि ईसाई समुदाय जाति की जकड़न का नया जमावड़ा है. उन्हें खुद अनेक प्रकार से आकर्षित किया गया था कि वे ईसाई धर्म के बारे में विचार करें. लेकिन वे उसमें फंसे नहीं. चर्च नेता दावा करते हैं कि ईसाईयत में न नस्लवाद है न जातिवाद. फिर सवाल उठता है कि चर्च अगर दलित ईसाईयों के साथ न्याय नहीं कर रहा है तो कौन रूकावट डाल रहा है. पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मुअमेन्ट का कहना है कि ईसाईत के दोनों संप्रदायों ने वंचित लोगों को अपने साम्राज्यवाद के चश्मे से ही देखा है. वे उनकी मुक्ति में कोई रूचि नहीं रखते. जातिवाद, अशिक्षा, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और सामाजिक न्याय की लड़ाई की बात आती है तो वे रास्ता सरकार की तरफ मोड़ देते हैं. इस बारे में चर्च संगठन में ही कई रिपोर्ट ऐसी हैं जिनमें वे स्वीकार करते हैं कि दलित ईसाईयों के साथ चर्च संगठनों में बेदभाव बरता जाता है.
"ऊंची जाति के ईसाई कम्मा और रेड्डी दलित ईसाईयों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसे हिन्दू ब्राह्मण हिन्दू दलितों के साथ करते हैं। यही नहीं, पादरी और कब्रिस्तान भी जाति के आधार पर बंटे हुए हैं। "
तमिलनाडु में आज भी दलित ईसाईयों को बराबरी का दर्जा हासिल नहीं है. उन्हें उसी तरह अलग बस्ती में रहना होता है जैसे दूसरी दलित आबादी रहती है. उन्होंने ब्राह्मणों के चर्च से दूर रखा जाता है. इन्हीं कारणों से दलित और ऊंची जाति के ईसाईयों में टकराव होते रहते हैं. लेकिन ये टकराव तमिलनाडु तक ही शामिल नहीं है बल्कि गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और पांडिचेरी हर जगह दलित ईसाईयों के साथ भेदभाव होता है. चर्च और पुलिस के रिकार्ड ऐसी घटनाओं से भरे पड़े हैं. कर्नाटक में ईसाईयों में ज्यादा दलित हैं. आंध्र प्रदेश में कैथोलिक में 75 प्रतिशत दलित हैं. ऊंची जाति के रेड्डी और कम्मा दलित ईसाईयों के साथ वैसा ही भेदभाव करते हैं जैसे हिन्दू समाज में होता है. वहां पादरियों को भी जाति के आधार पर दर्जा और ओहदा तय होता है. तमिलनाडु में कब्रिस्तान भी जाति के आधार पर बंटे हुए हैं. ऊंची जाति के कब्रों को दीवार खड़ी करके अलग कर दी जाती है.
पुवर क्रिश्चियन लिबरेशन मुवमेन्ट (पीसीएलएम) के अध्यक्ष फ्रांसिस सवाल उठाते हैं कि 40 हजार से अधिक शैक्षणिक संस्थाओं को चलाने के बावजूद चर्च ने दलित ईसाईयों को अवसर क्यों नहीं दिया? विदेशों से चर्च संगठनों को हजारों करोड़ रूपये मिलते हैं लेकिन उनमें से कितना पैसा दलित ईसाईयों के उत्थान के लिए खर्च किया जाता है? चर्च संगठनों ने भारत को 300 डायसिस (धर्म प्रांत) में बांट रखा है और हर डायसिस में 50 हजार से अधिक अनुयायी हैं। फ्रांसिस सवाल करते हैं कि इतना विशाल संसाधन होने के बावजूद धर्मांतरित ईसाईयों की दुर्दशा क्यों हो रही है? अगर दलित ईसाईयों को अनुसूचित जाति में ही रखा जाना है तो फिर धर्मांतरण किया ही क्यों गया? चर्च संगठन अपनी आय का एक चौथाई हिस्सा भी अगर दलित ईसाईयों के भले पर खर्च कर दें तो वे दलित ईसाई होने पर शायद गर्व कर सकें.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment