सोमवार, 16 अक्तूबर, 2006 को 18:05 GMT तक के समाचार
आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आरक्षण मामले में आड़े हाथों लिया
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण लागू करने संबंधी संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट पहले उसे सौंपे.
विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत के इस फ़ैसले से टकराव की स्थित उत्पन्न हो सकती है.
ग़ौरतलब है कि संसद के मॉनसून सत्र में उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण से संबंधित विधेयक पेश किया गया था.
इस पर संसद की स्थायी समिति विचार कर रही है और परंपरा रही है कि समिति इसे पहले संसद के समक्ष पेश करती है. उसके बाद ही इसे किसी और को सौंपे जाने की परंपरा है.
अतिरिक्त महाधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने सोमवार को अदालत को बताया कि 24 अगस्त को संसद में पेश किए गए बिल को स्थायी समिति के विचार के लिए भेज दिया गया है और अभी रिपोर्ट का इंतज़ार है.
आपने पूरे आंकड़े न होने के बावजूद नीति घोषित कर दी. आपके जवाबी हलफ़नामे में भी क्रीमी लेयर के मुद्दे का ज़िक्र नहीं है. आपने खेल पहले खेल लिया लेकिन उसके नियम नहीं बनाए
सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस अरजित पसायत और जस्टिस लोकेश्वर सिंह पंटा ने सरकार से पूछा है,'' आपने पूरे आंकड़े न होने के बावजूद नीति घोषित कर दी. आपके जवाबी हलफ़नामे में भी क्रीमी लेयर के मुद्दे का ज़िक्र नहीं है. आपने खेल पहले खेल लिया लेकिन उसके नियम नहीं बनाए.''
अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि स्थायी समिति की रिपोर्ट आने पर उसकी एक सील बंद प्रति अदालत को पहुँचाई जाए.
वहीं दूसरी ओर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर क़ानून मंत्रालय से परामर्श करने का निर्णय लिया है.
संसदीय कार्य मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी ने कहा है कि उनका यह नैतिक दायित्व है कि स्थायी समिति की रिपोर्ट पहले संसद के पटल पर रखी जाए.
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट पहले अदालत में पेश किए जाने के फ़ैसले से टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है.
उनका कहना था कि परंपरा रही है कि स्थायी समिति की रिपोर्ट संसद में पहले पेश होनी चाहिए.
लेकिन साथ ही उनका कहना था कि यह मामला स्थायी समिति को सौंपे जाने से पहले ही अदालत में विचाराधीन था.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आरक्षण मामले में आड़े हाथों लिया
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण लागू करने संबंधी संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट पहले उसे सौंपे.
विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत के इस फ़ैसले से टकराव की स्थित उत्पन्न हो सकती है.
ग़ौरतलब है कि संसद के मॉनसून सत्र में उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण से संबंधित विधेयक पेश किया गया था.
इस पर संसद की स्थायी समिति विचार कर रही है और परंपरा रही है कि समिति इसे पहले संसद के समक्ष पेश करती है. उसके बाद ही इसे किसी और को सौंपे जाने की परंपरा है.
अतिरिक्त महाधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने सोमवार को अदालत को बताया कि 24 अगस्त को संसद में पेश किए गए बिल को स्थायी समिति के विचार के लिए भेज दिया गया है और अभी रिपोर्ट का इंतज़ार है.
आपने पूरे आंकड़े न होने के बावजूद नीति घोषित कर दी. आपके जवाबी हलफ़नामे में भी क्रीमी लेयर के मुद्दे का ज़िक्र नहीं है. आपने खेल पहले खेल लिया लेकिन उसके नियम नहीं बनाए
सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस अरजित पसायत और जस्टिस लोकेश्वर सिंह पंटा ने सरकार से पूछा है,'' आपने पूरे आंकड़े न होने के बावजूद नीति घोषित कर दी. आपके जवाबी हलफ़नामे में भी क्रीमी लेयर के मुद्दे का ज़िक्र नहीं है. आपने खेल पहले खेल लिया लेकिन उसके नियम नहीं बनाए.''
अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि स्थायी समिति की रिपोर्ट आने पर उसकी एक सील बंद प्रति अदालत को पहुँचाई जाए.
वहीं दूसरी ओर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर क़ानून मंत्रालय से परामर्श करने का निर्णय लिया है.
संसदीय कार्य मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी ने कहा है कि उनका यह नैतिक दायित्व है कि स्थायी समिति की रिपोर्ट पहले संसद के पटल पर रखी जाए.
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट पहले अदालत में पेश किए जाने के फ़ैसले से टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है.
उनका कहना था कि परंपरा रही है कि स्थायी समिति की रिपोर्ट संसद में पहले पेश होनी चाहिए.
लेकिन साथ ही उनका कहना था कि यह मामला स्थायी समिति को सौंपे जाने से पहले ही अदालत में विचाराधीन था.
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