Sunday, March 29, 2009

आत्मा से धोखा, इज्जत से खिलवाड़

आत्मा से धोखा, इज्जत से खिलवाड़

पिछले कुछ समय से विश्वभर के समाचारपत्रों व अन्य प्रचार माध्यमों के द्वारा `पादरियों´ के नैतिक चरित्र को लेकर जोरदार सवाल खड़े किए गए हैं, जिस कारण साधारण मसीही विश्वासी अपने धार्मिक अगुवों के लगातार गिरते नैतिक स्तर के कारण शर्मिदगी महसूस करने लगे है। वैसे तो कैथोलिक कलेर्जीमैन (चरवाहों) द्वारा अपनी गलती मानने का सवाल ही नहीं उठता फिर भी अंतत: वैटिकन ने इस घिनौने तथ्य को स्वीकार कर लिया है कि कुछ पादरी एवं मिशनरी बच्चों एवं चर्च की ननों के साथ यौनाचार में लिप्त पाये गए है। पोप बेन्डिक्ट सोलहवें ने अमेरिका एवं सिडनी की यात्रा से लौटने के बाद कैथोलिक पादरियों के लिये नये दिशा निर्देश जारी किये है। अमेरिका एवं सिडनी यात्रा के दौरान पोप बेन्डिक्ट सोलहवें को दुराचारी पादरियों के कारण विरोध का सामना करना पड़ा था हालांकि पोप ने वहां के निवासियों से कैथोलिक पादरियों द्वारा काफी समय से किये जा रहे यौन अपराधों के लिए सर्वाजनिक रुप में क्षमा मांग ली थी। इतना ही नही उन्होंने ऐसे लोगों को कानून के अनुसार दंड देने का भी समर्थन किया था। ठीक है कि आखिर पोप ने चर्च में आ रही नैतिक गिरावट को माना तो है। पोप बेन्डिक्ट सोलहवें पिछले दिनों सिडनी में `विश्व युवा दिवस समारोह´ को सम्बोधित करने आए थे।कुछ वर्ष पूर्व रोम के दैनिक ला रिपब्बलिका में प्रकाशित एक रिर्पोट में बताया गया था कि इस तरह के मामले अमरीका, ब्राजील, फिलीपींस, भारत, आयरलैंड एवं इटली समेत तेइस देशों में पाए गए हैं। वैटिकन के मुख्य प्रवक्ता ने कहा है कि समस्या करीब-करीब जानी हुई है और यह कुछ निश्चित भू-भाग पर सीमित है और हम इस समस्या से निपटने के लिए बिशपों, यूनियन आफ सुपीरियर्स जनरल तथा इंटरनैशनल यूनियन आफ सुपीरियर्स जनरल का सहयोग ले रहे है।वेटिकन के नये नियमों के तहत अब पादरी बनने से पहले `यौनेच्छाओं की जांच´ कराना अनिवार्य होगा। रोमन कैथोलिक चर्च में नियुक्तियों से पहले भविष्य के पादरियों का मनोवैज्ञानिक परीक्षण किया जायेगा जिसमें यह जांच की जायेगी कि क्या यह लोग अपनी यौनेच्छाओं को काबू में रख पाते है अथवा नहीं। वेटिकन की और से जो नए नियम जारी किये गए है उसमें यह शर्त रखी गई है कि पादरियों का प्रशिक्षण देने से पहले उनका मनोवैज्ञानिक परीक्षण जरुर किया जाए। हाल के वर्षों में कई ऐसी घटनाएं हुई जिसमें यौन दुव्यर्वहार के कारण कैथोलिक चर्च को काफी बदनामी का सामना करना पड़ा हैं।

अमेरिका के कैथोलिक चर्च ने यौन उत्पीड़न के शिकार लोगों के लिए दस करोड़ डालर से ज्यादा का मुआवजा दिया है। अमेरिका के इतिहास में आज तक यौन उत्पीड़न के शिकार लोगों के बीच हुआ अब तक का यह सबसे बड़ा सौदा है। बिशप टाड ब्राउन ने लास ऐंजिलिस के सुपीरियर कोर्ट में कुछ वर्ष पूर्व माफी मांगते हुए हजारों पन्नों की एक फाइल जारी की थी जिसमें पादरियों और ननों के यौन उत्पीड़न के मामले दर्ज थे

घटनाओं के मीडिया में आने के कारण कैथोलिक धर्मासन पर विराजमान लोग गहन चिंतन में पड़े हुए थे। उनकी चिंता का मुख्य कारण था वर्तमान चर्च के `पुरोहितों में व्याप्त यौनाचार´। पुरोहितों में यौन कुंठाओं के पनपते रहने से वे मानसिक रुप से चर्च की अनिवार्य सेवाओं से मुंह मोड़ने लगे हैं। इस का असर कैथोलिक विश्वासियों में बढ़ते आक्रोश के रुप में देखा जा सकता है। विश्वासियों द्वारा चर्च की मर्यादाओं को बरकरार रखने की मांग बढ़ती जा रही है और इस आंदोलन ने अंतरराश्ट्रीय स्वरुप हासिल कर लिया है। इस आंदोलन में कैथोलिक युवा वर्ग अग्रणी भूमिका निभा रहा है। भारत के कैथोलिक पुरोहितों को इस आंदोलन से फिलहाल कोई खतरा नहीं है क्योंकि यहां का अधिकांश कैथोलिक समुदाय इतना दरिद्र एवं दबा हुआ है कि उसे यह सब समझने-समझाने की फुर्सत कहां। इसी वर्ष केरल की दो ननों/धर्म-बहनों ने आत्महत्या कर ली। बाईस वर्षीय अनुपा मेरी के पिता ने आरोप लगया कि कान्वेंट के अंदर उसकी नन बेटी को यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा। कुछ समय पूर्व घर आई नन बेटी ने अपनी मां से इस बारे में षिकायत की थी। अनुपा मेरी के पिता ने कहा कि वह बहुत डरी हुई थी। नन अनुपा मेरी के पिता `पचन´ कोलम कैथोलिक डायसिस में कैथोलिक बिशप के रसोइये का काम कर रहे है। कुछ दिनों के अंतराल में ही दो ननों (धर्म-बहनों) द्वारा आत्म हत्या कर लिए जाने पर भी कैथोलिक विष्वासियों में कोई हलचल न होना चिन्ता का विशय है। हालांकि राज्य महिला आयोग ने चर्च अधिकारियों पर अंगुली उठाई है। केरल में पिछले 14 वर्षों में 15 नन आत्महत्या कर चुकी है। केरल के दर्जनों पादरियों एवं ननों के विरुद्व हत्या, बलात्कार, चोरी, धोखाधड़ी जैसे संगीन अपराधिक मुक्क्दमें विभिन्न अदालतों में चल रहे है। राज्य में 33,226 ननों में से अधिक्तर चर्च व्यवस्था में घुट-घुट कर जी रही है। राज्य में चर्च का बड़ा राजनीतिक प्रभाव होने के कारण राज्य सरकार इस मामले में दखल देने से बचती है। पुअर क्रििष्चयन लिबरेशन मूवमेंट के वरिष्ठ नेता एवं चर्च रेस्टोरेशन के संपादक श्री पी.बी. लोमियों का कहना है कि भारतीय चर्च के अंदर जो भी `सुधारवादी आवाज´ उठाई जाती है, उसे बढ़ी कुटिलता से दबा दिया जाता है, क्योंकि यहां कि तमाम बड़ी राजनीतिक पार्टियों एवं सत्ता का सहयोग इन्हें प्राप्त है।अमेरिका के रोमन कैथोलिक चर्च के छह करोड़ तीस लाख अनुयायी हैं अर्थात अमेरिका की कुल जनसंख्या का एक चौथाई भाग कैथोलिक अनुयायियों का है, साथ ही यहां के बिशपों एवं कार्डीनलों का वेटिकन (पोप) पर सबसे अधिक प्रभाव है। जब कभी नए पोप का चुनाव होता है, तो यहां के कार्डीनलों के प्रभाव को साफ देखा जा सकता है। यहां के कैथोलिक विश्वासी चर्च अधिकारियों की कारगुजारियों के प्रति अधिक सचेत रहते हैं. वर्तमान समय में विश्वभर के कैथोलिक धर्माधिकारियों, पुरोहितों तथा सबंधित लोगों में तीन `डब्ल्यू´ का बोलबाला हैं अर्थात वैल्थ, वाइन एंड वूमेन। इस प्रकार का अनाचार कैथोलिक चर्च के अंदर लगातार घर कर रहा है।´´ चर्च अधिकारियों के गिरते नैतिक स्तर को देखते हुए ही वेटिकन ने नए नियम लागू किये है। हालांकि समलैगिकों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कुछ संगठन अनिवार्यता की शर्त का विरोध कर रहे है। नए नियम के अनुसार कैथोलिक पादरी प्रशिक्षण से पहले पेशेवर मनोवैज्ञानिक परीक्षण से गुजरेंगे। अमेरिका के वोस्टन में कई चर्चों के पादरियों पर वहां की अदालतों में मुकदमें चले एवं कैथोलिक चर्च द्वारा कानूनी लड़ाई हारने के बाद भुगत-भोगियों को मुआवजा देना पड़ रहा है। वहां के विश्वासी अदालतों में यौनाचारी पुरोहितों को घसीट रहे है। कैथोलिक चर्च द्वारा ऐसे अपराधियों को संरक्षण देने, बचाने तथा उनकी काली करतूतों पर पर्दा डालने से वहां के मसीही विश्वासियों में भारी असंतोश है। उनका कहना है कि `यह हमारी आत्मा के साथ बलात्कार हैं´-`यह हमारी आस्था के साथ धोखा है´-`यह निर्बोधता की हत्या है।´ देर से ही सही आखिर वेटिकन ने विश्वासियों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए नई व्यवस्था लागू करने का निर्णय लिया है। वेटिकन के दिशा निर्देशों का एक मूल उदेश्य भी है कि अब वह चर्च के अंदर इस तरह के होने वाले हादसों के प्रति नर्म नही रहेगा। यहां तक कि समलैगिता की तरफ झुकाव रखने वाले लोगों के लिए अब चर्च में पादरी बनने के रास्ते बंद हो गए है। हालांकि वेटिकन ने यह भी साफ किया है कि समलैगिक प्रवृत्ति का होना कोई पाप तो नहीं है लेकिन यह एक भटकाव है, नियमों का उल्लंघन और एक घाव है। नए नियमों के तहत समलैगिक प्रवृत्ति वाले अब पादरी नहीं बन पायेगें। वेटिकन द्वारा उठाए गये इन कदमों से यौनाचार पीिड़तों के मन को शांति अवश्य मिलेगी। इस लेख के बारे में आप की राय?

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