Wednesday, May 8, 2002

दलित पुरोहित

हिंदू धर्म के नए पुरोहित

रामदत्त त्रिपाठी

भारत में कभी अछूत समझे जानेवाले समुदायों ने अब एक और सामाजिक बाधा लांघ दी है।हिंदू कर्मकांड जिनका ज्ञान अबतक ब्राह्मणों के अलावा किसी को नहीं दिया जाता था अब न केवल ग़ैर ब्राह्मणों को बल्कि कभी अछूत समझे जाने वाले लोगों को भी दिया जा रहा है।और इस प्रशिक्षण के लिए बड़ी संख्या में ग़ैर ब्राह्मण उत्साह से आगे आ रहे हैं।

अनुसूचित जाति के एक युवक गोवर्धन लाल मीणा ने कुछ ही दिन पहले तीन महीनों का यह प्रशिक्षण समाप्त किया है और हिंदू पुजारी का काम करने के लिए कृतसंकल्प हैं।पूर्वज कभी सपने में भी ये काम करने की नहीं सोच सकते थे।गोवर्धन लाल कहते हैं कि समाज काफ़ी तेज़ी से बदल रहा है और कम से कम उनके राज्य राजस्थान से तो छुआछूत बिल्कुल ही समाप्त हो चुका है.जन्म से लेकर मृत्यु तक कम से कम 16 ऐसे कर्मकांड हैं जिनका पालन करना एक हिंदू के लिए अनिवार्य है.रोज़मर्रा की ज़िदगी में भी कई ऐसे काम होते हैं जिनके समय का निर्धारण पंडितों द्वारा पंचांग देखकर किया जाता है.

सम्मान में कमी

धीरे-धीरे पुजारी का काम अपना आकर्षण खोता जा रहा है। न तो उसमें पहले जैसा सम्मान रहा न ही पैसा।प्रतिभाशाली ब्राह्मण युवक दूसरी नौकरियों में जाते हैं और आमतौर पर कम प्रतिभा वाले ब्राह्मण युवक ही यह पेशा चुनते रहे हैं.उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के निदेशक सच्चिदानंद पाठक कहते हैं कि इनमें कई ऐसे हैं जो सही तरह से वेद मंत्रों का उच्चारण भी नहीं कर पाते.और उनका कहना है कि इसी को ध्यान में रखकर मानव संसाधन मंत्रालय ने इस प्रशिक्षण की शुरूआत की है.उनका चुनाव एक खुली प्रतियोगिता के माध्यम से किया गया और ये प्रशिक्षण उत्तर प्रदेश के 70 ज़िलों में आरंभ किया गया.इन छात्रों के दूसरे बैच ने कुछ ही दिन पहले अपना प्रशिक्षण पूरा किया है.

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