Sunday, October 6, 2002

'जबरन' धर्मपरिवर्तन पर रोक

भारत के तमिलनाडु राज्य की सरकार ने एक अधिनियम लागू कर 'बलपूर्वक' धर्मपरिवर्तन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

शनिवार रात को लागू किए गए इस अधिनियम के अनुसार किसी एक धर्म के अनुयायी को दूसरा धर्म अपनाने के लिए बाध्य करने पर जेल और भारी जुर्माना हो सकता है.
तमिलनाडु की द्रविड़ पार्टियों में धर्मनिर्पेक्षता, तर्कवाद और उदारवाद की परंपरा रही है और राज्य सरकार के इस क़दम पर विश्वेषकों ने भी अचरज ज़ाहिर किया है.
पर्यवेक्षक इसे अन्नाद्रमुक की नेता जयललिता की केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के और क़रीब आने की कोशिश मान रहे हैं.
क्या यह भाजपा के करीब आने की कोशिश है?
इससे पहले जयललिता ने बिना किसी ख़ास हिचकिचाहट के आतंकवाद निरोधक अधिनियम को स्वीकार कर लिया था.
इसके बाद कावेरी जल विवाद को लेकर दिल्ली जाने पर उन्होने कॉंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी की आलोचना की थी जिससे उनके भाजपा की ओर झुकने का आभास हुआ था.
बीबीसी के चेन्नई संवाददाता संपत कुमार के अनुसार इस अधिनियम को विधानसभा में जब क़ानून बनाने की कोशिश होगी तो इस मसले पर भीषण विवाद होने की संभावना है.

सज़ा और जुर्माना

अधिनियम लागू होने के बाद सब धर्मपरिवर्तनों की जानकारी ज़िला अधिकारी को देनी होगी.
अधिनियम में कहा गया है कि 'कोई भी व्यक्ति न अपने आप और न किसी और को बल, लालच या किसी ग़ैर-कानून तरीके से धर्मपरिवर्तन के लिए बाध्य करे.
'यहाँ तक कि दैविक ग़ुस्से की चेतावनी भी एक तरह की ज़बरदस्ती ही माना जाएगा.
यानी यह कह कर धर्म परिवर्तन करवाना भी ग़लत होगा कि ईश्वर या ऊपरी ताक़त नाराज़ हो जाएगी.
यह अधिनियम तमिलनाडु राज्य के कुछ भागों में ग़रीब दलित वर्ग के सदस्यों के धर्मपरिवर्तन के लगभग एक महीने बाद लागू किया गया है.हिंदूवादी संगठनों का आरोप है कि ये धर्मपरिवर्तन ग़रीब लोगों की स्थिति का फ़ायदा उठाकर किए गए हैं.
सरकार का कहना है कि उसे राज्य के कई हिस्सों से धर्मपरिवर्तन के समाचार मिले हैं इसलिए यह अधिनियम जारी करना ज़रुरी हो गया है.

'अत्याचार'
बीबीसी संवाददाता संपत कुमार के अनुसार 1980 के दशक में राज्य के एक दक्षिणी ज़िले में एक पूरे गाँव के लोगों ने धर्मपरिवर्तन कर इस्लाम अपना लिया क्योंकि उनके ख़िलाफ़ उच्च जाति के लोगों ने 'अत्याचार' किए थे.
कुछ ही सप्ताह पहले कांचिपुरम के पास एक गाँव के दलित वर्ग के लोगों ने इस्लाम धर्म अपनाने की चेतावनी दे डाली थी क्योंकि उन्हें हिंदू मंदिर में पूजा करने का अधिकार नहीं था.
इन लोगों का कहना है कि इस्लाम धर्म में इनके साथ कोई भेदभाव नहीं करता.
उधर काँची के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती तमिलनाडु सरकार के इस क़दम की सराहना की है और कहा है कि 'ऐसा एक क़ानून देशभर के लिए बनाया जाना चाहिए.'

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